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बता ऐ ज़िंदगी तेरे परस्तारों ने क्या पाया | शाही शायरी
bata ai zindagi tere parastaron ne kya paya

ग़ज़ल

बता ऐ ज़िंदगी तेरे परस्तारों ने क्या पाया

फ़ाज़िल अंसारी

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बता ऐ ज़िंदगी तेरे परस्तारों ने क्या पाया
उठा कर नाज़ तेरे नाज़-बरदारों ने क्या पाया

वो काँटे ही सही कुछ तो दिया हम को बयाबाँ ने
मगर गुलशन से फूलों के तलब-गारों ने क्या पाया

ज़रा मा'लूम तो कीजे ख़िरद पर मरने वालों से
कि ठुकरा कर जुनूँ को इन ज़ियाँ-कारों ने क्या पाया

कलेजा तेरा फट जाएगा वाइज़ फ़र्त-ए-हैरत से
बता दूँ मैं अगर तुझ को गुनहगारों ने क्या पाया

बयाबाँ ग़म न कर बे-फ़ैज़ी-ए-अब्र-ए-बहाराँ का
तिरा दामन है गर ख़ाली तो गुलज़ारों ने क्या पाया

ग़म-ए-हस्ती ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-दुनिया ग़म-ए-दौराँ
मिटा कर मुझ को 'फ़ाज़िल' इन सितम-गारों ने क्या पाया