बस गया जब से यार आँखों में
तब से फूली बहार आँखों में
नज़र आने से रह गया अज़-बस
छा गया इंतिज़ार आँखों में
चश्म-ए-बद-दूर ख़ूब लगता है
तूतिया-ए-निगार आँखों में
चश्म-ए-मस्त उस की देखी थी इक रोज़
उस का खींचा ख़ुमार आँखों में
मुझ को मंज़ूर है 'हसन' जो मिले
ख़ाक-ए-पा-ए-निगार आँखों में
ग़ज़ल
बस गया जब से यार आँखों में
मीर हसन