बंदा-ए-मोहर-ब-लब हूँ मैं सना-ख़्वाँ तेरा
दिल में रहता है मुक़फ़्फ़ल ग़म-ए-पिन्हाँ तेरा
ज़िंदगी कुछ भी नहीं सोज़-ए-मोहब्बत के बग़ैर
आग उस दिल को लगे जो नहीं ख़्वाहाँ तेरा
क़ुल्ज़ुम-ए-इश्क़ के तूफ़ान से बचना मालूम
ऐ दिल-ए-ज़ार अब अल्लाह निगह-बाँ तेरा
क्यूँ गुल-ए-तर को मैं आईने से तश्बीह न दूँ
इस में आता है नज़र चेहरा-ए-ख़ंदाँ तेरा
हौज़-ए-कौसर भी हो उस जाम पे सदक़े सौ बार
जिस में मुझ को नज़र आए रुख़-ए-ताबाँ तेरा
ग़ज़ल
बंदा-ए-मोहर-ब-लब हूँ मैं सना-ख़्वाँ तेरा
जोश मलसियानी