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बंद दरीचों के कमरे से पूर्वा यूँ टकराई है | शाही शायरी
band darichon ke kamre se purwa yun Takrai hai

ग़ज़ल

बंद दरीचों के कमरे से पूर्वा यूँ टकराई है

ताज सईद

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बंद दरीचों के कमरे से पूर्वा यूँ टकराई है
जैसे दिल के आँगन में दुखिया ने तान लगाई है

पेड़ों की ख़ामोशी से भी दिल मेरा घबराता है
सहरा की वीरानी देख के आँख मिरी भर आई है

दिल के सहरा में यादों के झक्कड़ ऐसे चलते हैं
जैसे नैन झरोका भी उस प्रीतम की अँगनाई है

अपने दिल में यादों ने ज़ख़्मों के फूल खिलाए हैं
जिस्म की इस दीवार के अंदर किस ने नक़ब लगाई है

पत्ता पत्ता शाख़ से टूटे दरवाज़ों पे वहशत सी
यारो प्रेम कथा में किस ने दर्द की तान मिलाई है

दरिया दरिया नाव बहे तो गोरी गीत प्रोती जाए
उन गीतों की तान अमर है जिन का रंग जुदाई है

पंछी की चहकार हमेशा जंगल को गरमाती है
ख़ल्क़-ए-ख़ुदा ने अपने दिल में बस यही याद बसाई है

क़दम क़दम दुख दर्द के साए शहर हुए वीराने भी
किस ने देस के फूलों पर अब हिज्र की राख उड़ाई है