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बंद आँखों में सारा तमाशा देख रहा था | शाही शायरी
band aankhon mein sara tamasha dekh raha tha

ग़ज़ल

बंद आँखों में सारा तमाशा देख रहा था

इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी

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बंद आँखों में सारा तमाशा देख रहा था
रस्ता रस्ता मेरा रस्ता देख रहा था

काली रात और काले तारे काला चंदा
धरती का ना-बीना लड़का देख रहा था

टूटी-फूटी क़ब्रें धुँदले धुँदले कत्बे
हर कत्बे में अपना चेहरा देख रहा था

मिट्टी देने वाले हाथों को ये ख़बर क्या
किस हसरत से ज़र्रा ज़र्रा देख रहा था

रग रग फ़र्त-ए-दहशत से सूखी जाती थी
परछाईं से ख़ून उबलता देख रहा था

सूखे पत्तों पर जलती शबनम के क़तरे
ठंडा सूरज सहमा सहमा देख रहा था

चुपके से हैजान उठा कर प्यासा क़तरा
तुग़्यानी पर आई नदिया देख रहा था

एहसासात की टूटती सरहद पर मैं 'ख़ुसरव'
ख़्वाब से आगे भी जो कुछ था देख रहा था