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बख़्श दी हाल-ए-ज़बूँ ने जल्वा-सामानी मुझे | शाही शायरी
baKHsh di haal-e-zabun ne jalwa-samani mujhe

ग़ज़ल

बख़्श दी हाल-ए-ज़बूँ ने जल्वा-सामानी मुझे

एहसान दानिश

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बख़्श दी हाल-ए-ज़बूँ ने जल्वा-सामानी मुझे
काश मिल जाए ज़माने की परेशानी मुझे

ऐ निगाह-ए-दोस्त ऐ सरमाया-दार-ए-बे-ख़ुदी
होश आता है तो होती है परेशानी मुझे

खुल चुका हाँ खुल चुका दिल पर तिरा रंगीं फ़रेब
दे न धोका ऐ तिलिस्म-ए-हस्ती-ए-फ़ानी मुझे

फिर न साबित हो कहीं नंग-ए-बयाबाँ जिस्म-ए-राज़
सोच कर करना जुनूँ माइल ये उर्यानी मुझे

मुंतहा-ए-ज़ौक़-ए-सज्दा ये कि इक फ़रेब
कुफ़्र तक ले आई तक्मील-ए-मुस्लमानी मुझे

मंज़िलों 'एहसान' पीछे रह गए दैर ओ हरम
ले चला जाने कहाँ सैलाब-ए-हैरानी मुझे