बजट मैं ने देखे हैं सारे तिरे
अनोखे अनोखे ख़सारे तिरे
अलल्ले-तलल्ले उधारे तिरे
भला कौन क़र्ज़े उतारे तिरे
गिरानी की सौग़ात हासिल मिरा
महासिल तिरे गोश्वारे तिरे
मुशीरों का जमघट सलामत रहे
बहुत काम जिस ने सँवारे तिरे
मिरी सादा-लौही समझती नहीं
हिसाबी किताबी इशारे तिरे
कई इस्तलाहों में गूँधे हुए
किनाए तिरे इस्तिआरे तिरे
तू अरबों की खरबों की बातें करे
अदद कौन इतने शुमारे तिरे
तुझे कुछ ग़रीबों की पर्वा नहीं
वडेरे हैं प्यारे दुलारे तिरे
इधर से लिया कुछ उधर से लिया
यूँही चल रहे हैं इदारे तिरे
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ग़ज़ल
बजट मैं ने देखे हैं सारे तिरे
अनवर मसूद