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बजा कि है पास-ए-हश्र हम को करेंगे पास-ए-शबाब पहले | शाही शायरी
baja ki hai pas-e-hashr hum ko karenge pas-e-shabab pahle

ग़ज़ल

बजा कि है पास-ए-हश्र हम को करेंगे पास-ए-शबाब पहले

अख़्तर शीरानी

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बजा कि है पास-ए-हश्र हम को करेंगे पास-ए-शबाब पहले
हिसाब होता रहेगा यारब हमें मँगा दे शराब पहले

फ़ज़ा-ए-शब हँस के जगमगाई वो नाज़नीं सुब्ह बन के आई
हुआ है रौशन मिरे शबिस्ताँ में चाँद से आफ़्ताब पहले

ज़बाँ पे आया न हर्फ़-ए-मतलब कि कह गईं कुछ शरीर नज़रें
सवाल करने न पाए हैं हम कि मिल गया है जवाब पहले

जिनाँ में पहले-पहल पिएगा तो लड़खड़ाता फिरेगा ज़ाहिद
सुरूर-ए-कौसर की है अगर धन जहाँ में पी ले शराब पहले

है ख़ुसरव-ए-इश्क़ का ये फ़रमाँ कि दिल लगाना नहीं है आसाँ
जिसे हो कू-ए-बुताँ का अरमाँ वो कू-ब-कू हो ख़राब पहले

ग़म-ओ-अलम रंज-ओ-यास-ओ-हसरत उठाऊँगा सब के रुख़ से पर्दे
तुम्हें क़सम है दिल हज़ीं की उठाओ तो तुम नक़ाब पहले

इलाही वो बू-ए-पैरहन से भी पहले हो हम-कनार आ कर
चमन में होता है जल्वा-अफ़रोज़ फूल से माहताब पहले

ये किस के रंग-ए-रुख़-ए-बहारीं ने बख़्श दी है तरावत-ए-नौ
शगुफ़्ता होता न था गुलिस्ताँ में उस अदा से गुलाब पहले

निगाह-ए-साक़ी की मुस्कुराई कहा जब 'अख़्तर' ने अपनी धन में
पिएँगे पीते रहेंगे मय-कश मगर ये ख़ाना-ख़राब पहले