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बैठे हैं ईद को सब यार बग़ल में ले कर | शाही शायरी
baiThe hain id ko sab yar baghal mein le kar

ग़ज़ल

बैठे हैं ईद को सब यार बग़ल में ले कर

ग़ज़नफ़र अली ग़ज़नफ़र

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बैठे हैं ईद को सब यार बग़ल में ले कर
बैठें हम क्या दिल-ए-बीमार बग़ल में ले कर

कुश्ता-ए-नाज़ फ़क़त इस पे हैं नाज़ाँ जी में
कि निकलता है वो तलवार बग़ल में ले कर

रोए हम उस की तमन्ना-ए-हम-आग़ोशी में
दिल-ए-मायूस को नाचार बग़ल में ले कर

बद-गुमानी से हमें बैठते उठते है ये सोच
बैठे होंगे उसे अग़्यार बग़ल में ले कर

मय-ए-उल्फ़त की तरंग आई तो आया दौड़ा
शीशा-ए-मय को वो मय-ख़्वार बग़ल में ले कर

कू-ब-कू ख़ाना-नशीनी का हो उस की चर्चा
बैठे जो तुझ सा तरहदार बग़ल में ले कर

शब-ए-तन्हाई में सो रहते हैं मुश्ताक़ तिरे
ब-तसव्वुर तुझे हर बार बग़ल में ले कर

सुन के हम महव-ए-चमन उस को 'ग़ज़ंफ़र' आए
दिल-ए-पुर-दाग़ से गुलज़ार बग़ल में ले कर