बैठे हैं ईद को सब यार बग़ल में ले कर
बैठें हम क्या दिल-ए-बीमार बग़ल में ले कर
कुश्ता-ए-नाज़ फ़क़त इस पे हैं नाज़ाँ जी में
कि निकलता है वो तलवार बग़ल में ले कर
रोए हम उस की तमन्ना-ए-हम-आग़ोशी में
दिल-ए-मायूस को नाचार बग़ल में ले कर
बद-गुमानी से हमें बैठते उठते है ये सोच
बैठे होंगे उसे अग़्यार बग़ल में ले कर
मय-ए-उल्फ़त की तरंग आई तो आया दौड़ा
शीशा-ए-मय को वो मय-ख़्वार बग़ल में ले कर
कू-ब-कू ख़ाना-नशीनी का हो उस की चर्चा
बैठे जो तुझ सा तरहदार बग़ल में ले कर
शब-ए-तन्हाई में सो रहते हैं मुश्ताक़ तिरे
ब-तसव्वुर तुझे हर बार बग़ल में ले कर
सुन के हम महव-ए-चमन उस को 'ग़ज़ंफ़र' आए
दिल-ए-पुर-दाग़ से गुलज़ार बग़ल में ले कर
ग़ज़ल
बैठे हैं ईद को सब यार बग़ल में ले कर
ग़ज़नफ़र अली ग़ज़नफ़र