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बहुत कठिन है डगर थोड़ी दूर साथ चलो | शाही शायरी
bahut kaThin hai Dagar thoDi dur sath chalo

ग़ज़ल

बहुत कठिन है डगर थोड़ी दूर साथ चलो

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

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बहुत कठिन है डगर थोड़ी दूर साथ चलो
नई है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो

हयात बिखरी हुई है समेट लेने दो
मैं सी लूँ चाक-ए-जिगर थोड़ी दूर साथ चलो

अभी तो दूर है मंज़िल उदास रस्ते हैं
अभी न फेरो नज़र थोड़ी दूर साथ चलो

ख़ुमार-ए-इश्क़ है बाक़ी रग-ए-शिकस्ता में
नशा ये जाए उतर थोड़ी दूर साथ चलो

न आरज़ू न कोई हौसला न मंज़िल है
तुम्ही हो ज़ौक़-ए-सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो

सियाह रात मुसल्लत है दिल की दुनिया पर
मता-ए-नूर-ए-सहर थोड़ी दूर साथ चलो

न जाने डोर ये साँसों की टूट जाए कब
किसे है उस की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो

तमाम उम्र मिरा साथ दे न पाओगे
अभी तो यार मगर थोड़ी दूर साथ चलो