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बहार-ए-ज़ीस्त की महरूमियाँ अरे तौबा | शाही शायरी
bahaar-e-zist ki mahrumiyan are tauba

ग़ज़ल

बहार-ए-ज़ीस्त की महरूमियाँ अरे तौबा

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

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बहार-ए-ज़ीस्त की महरूमियाँ अरे तौबा
दिल-ए-शगुफ़्ता की नाकामियाँ अरे तौबा

विसाल-ए-यार की हसरत अरे मआ'ज़-अल्लाह
फ़िराक़-ओ-शौक़ की बेताबियाँ अरे तौबा

पयाम-ए-दावत-ए-मय नीम-बाज़ आँखों से
निगाह-ए-नाज़ की रंगीनियाँ अरे तौबा

ख़ुदा ने इश्क़ को मजबूरियों का ग़म दे कर
लिखीं नसीब में बर्बादियाँ अरे तौबा

हमारी आँख से आँसू भी 'शम्स' बह न सके
दिल-ए-ग़रीब की मजबूरियाँ अरे तौबा