बहार आई किसी का सामना करने का वक़्त आया
सँभल ऐ दिल कि इज़हार-ए-वफ़ा करने का वक़्त आया
उन्हें आमादा-ए-मेहर-ओ-वफ़ा करने का वक़्त आया
बड़ी मुद्दत में अर्ज़-ए-मुद्दआ करने का वक़्त आया
रवाँ हैं अपने मरकज़ की तरफ़ आसूदा उम्मीदें
हुजूम-ए-यास को दिल से जुदा करने का वक़्त आया
फिर इक गुम-कर्दा-राह-ए-ज़िंदगी को मिल गई मंज़िल
सुजूद-ए-शुक्र-ए-बे-पायाँ अदा करने का वक़्त आया
कभी दूरी थी लेकिन अब ख़याल-ए-ख़ौफ़-ए-दूरी है
फ़ुग़ाँ की साअ'तें गुज़रीं दुआ करने का वक़्त आया
कहाँ तक ख़त्म रहता दरमियाँ पर दिल का अफ़्साना
बिल-आख़िर दरमियाँ से इब्तिदा करने का वक़्त आया
हर इक जुर्म-ए-मोहब्बत उस निगाह-ए-लुत्फ़ के सदक़े
नवेद-ए-आफ़ियत ले कर ख़ता करने का वक़्त आया
निगाह ओ दिल से अब तफ़सीर-ओ-शरह-ए-आरज़ू होगी
ज़बान ओ लब से तर्क-ए-इल्तिजा करने का वक़्त आया
वो आते हैं 'शकील' अब अपने दिल से हाथ धो बैठो
निगाह-ए-नाज़ की क़ीमत अदा करने का वक़्त आया

ग़ज़ल
बहार आई किसी का सामना करने का वक़्त आया
शकील बदायुनी