बहार आई ब-तंग आया दिल-ए-वहशत-पनाह अपना
करूँ क्या है यही चाक-ए-गरेबाँ दस्तगाह अपना
टपकती जो तरह सुम्बुल से होवे पै-ब-पै शबनम
हमारे हाल पर रोने लगा अब दूद-ए-आह अपना
मिरा दिल लेते ही कर चश्म-पोशी मुझ से मुँह फेरा
नज़र आता नहीं कुछ मुझ को दिलबर से निबाह अपना
सितम से दी तसल्ली उस कमाँ-अबरू के क़ुर्बां हूँ
रग-ए-जाँ कर दिया दिल को मिरे तीर-ए-निगाह अपना
तू हरजाई न हो घट जाएगा जूँ ज़र अयारों में
ये 'उज़लत' बंदा अपना फ़िदवी अपना ख़ैर-ख़्वाह अपना
ग़ज़ल
बहार आई ब-तंग आया दिल-ए-वहशत-पनाह अपना
वली उज़लत