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बड़ी हैरत से अरबाब-ए-वफ़ा को देखता हूँ मैं | शाही शायरी
baDi hairat se arbab-e-wafa ko dekhta hun main

ग़ज़ल

बड़ी हैरत से अरबाब-ए-वफ़ा को देखता हूँ मैं

सय्यद ज़मीर जाफ़री

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बड़ी हैरत से अरबाब-ए-वफ़ा को देखता हूँ मैं
ख़ता को देखता हूँ और सज़ा को देखता हूँ मैं

अभी कुछ देर है शायद मिरे मायूस होने में
अभी कुछ दिन फ़रेब-ए-रहनुमा को देखता हूँ मैं

ख़ुदा मालूम दिल को जुस्तुजू है किन जज़ीरों की
न जाने किन सितारों की ज़िया को देखता हूँ मैं

ये क्या ग़म है मिरे अशआर को नम कर दिया किस ने
ये दिल में किस समुंदर की घटा को देखता हूँ मैं

'ज़मीर' इक क़ैद-ए-ना-महसूस को महसूस करता हूँ
किसी नादानी-ए-ज़ंजीर-ए-पा को देखता हूँ मैं