EN اردو
बड़ी दिल-शिकन है रह-ए-सफ़र कोई हम-सफ़र है न यार है | शाही शायरी
baDi dil-shikan hai rah-e-safar koi ham-safar hai na yar hai

ग़ज़ल

बड़ी दिल-शिकन है रह-ए-सफ़र कोई हम-सफ़र है न यार है

बेबाक भोजपुरी

;

बड़ी दिल-शिकन है रह-ए-सफ़र कोई हम-सफ़र है न यार है
कि जवाँ-असर है तमाम शय न सुकून है न क़रार है

ज़रा तेज़-गाम बढ़े चलो है फ़ज़ा-ए-सहरा मुसाफ़िरो
जहाँ आँख दिल की झपक गई वहीं ज़िंदगी का मज़ार है

न रुमूज़-ए-इश्क़ से बा-ख़बर न मिज़ाज-ए-हुस्न से आगही
ये मज़ाक़-ए-रामिश-ओ-रंग भी रह-ए-रास्ती से फ़रार है

न किसी में हुस्न-ए-हया रहा न किसी में बू-ए-वफ़ा रही
अभी दोश-ए-अक़्ल पे सर-बसर कोई देव-ए-मक्र सवार है

है ज़मीर-ए-ज़िंदा के वास्ते तो बिसात-ए-गुल भी तबाह-कुन
मिरे हम-जलीस ख़बर भी है यही आस्तीन का मार है

तिरी बे-पनाह नवाज़िशें तिरी बे-हिसाब इनायतें
मिरी रू-सियाही-ए-गूनागूँ का हिसाब है न शुमार है

तिरी रहमतों से है दूर कब मिरी चारा-साज़ी-ए-बे-कसी
किसी ग़म-नसीब की दहर में ये सदा से ख़ास पुकार है

न किसी से अद्ल की बात कर न किसी से ख़ैर की रख तलब
कि मता-ए-नूर-ए-सहर यहाँ शब-ए-तीरा-ए-तर पे निसार है

तिरी पंद ख़ैर-असर नहीं तिरी बंदगी भी ग़लत-निगर
तिरा फ़िक्र नासेह-ए-मोहतरम अभी मुफ़्लिसी का शिकार है