EN اردو
बढ़ा ये शक कि ग़ैरों कि तन में आग लगी | शाही शायरी
baDha ye shak ki ghairon ki tan mein aag lagi

ग़ज़ल

बढ़ा ये शक कि ग़ैरों कि तन में आग लगी

रशीद लखनवी

;

बढ़ा ये शक कि ग़ैरों कि तन में आग लगी
हम आए क्या कि तिरी अंजुमन में आग लगी

ज़रा जो उस ने हटाई नक़ाब चेहरे से
गिरी वो बर्क़ की सब अंजुमन में आग लगी

बराबर आज ख़बर अश्क-ए-गर्म लाते हैं
ग़ज़ब की क़स्र-ए-दिल-ए-पुर-मेहन में आग लगी

ये तेरा वहशी-ए-आतिश-नफ़स जहाँ पहुँचा
पहाड़ जल के हुए ख़ाक बन में आग लगी

जला रहा है ये कह कह के दम-ब-दम सय्याद
तुझे ख़बर भी है बुलबुल चमन में आग लगी

कमाल-ए-हुस्न की गर्मी से मुझ को हैरत है
कि आज तक न मिरे पैरहन में आग लगी

जब आह-ए-गर्म चली दिल से साथ दौड़े अश्क
हुआ यक़ीन कि काम-ओ-दहन में आग लगी

चहार सम्त से ले ले के पानी अब्र आया
खिले जो फूल तो जाना चमन में आग लगी

जहाँ पढ़े गए अशआ'र तेरे गर्मा-गर्म
'रशीद' महफ़िल-ए-अहल-ए-सुख़न में आग लगी