बड़े बने थे 'जालिब' साहब पिटे सड़क के बीच
गोली खाई लाठी खाई गिरे सड़क के बीच
कभी गिरेबाँ चाक हुआ और कभी हुआ दिल ख़ून
हमें तो यूँही मिले सुख़न के सिले सड़क के बीच
जिस्म पे जो ज़ख़्मों के निशाँ हैं अपने तमग़े हैं
मिली है ऐसी दाद वफ़ा की किसे सड़क के बीच
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ग़ज़ल
बड़े बने थे 'जालिब' साहब पिटे सड़क के बीच
हबीब जालिब