बड़ा वीरान मौसम है कभी मिलने चले आओ
हर इक जानिब तिरा ग़म है कभी मिलने चले आओ
हमारा दिल किसी गहरी जुदाई के भँवर में है
हमारी आँख भी नम है कभी मिलने चले आओ
मिरे हमराह गरचे दूर तक लोगों की रौनक़ है
मगर जैसे कोई कम है कभी मिलने चले आओ
तुम्हें तो इल्म है मेरे दिल-ए-वहशी के ज़ख़्मों को
तुम्हारा वस्ल मरहम है कभी मिलने चले आओ
अँधेरी रात की गहरी ख़मोशी और तन्हा दिल
दिए की लौ भी मद्धम है कभी मिलने चले आओ
तुम्हारे रूठ के जाने से हम को ऐसा लगता है
मुक़द्दर हम से बरहम है कभी मिलने चले आओ
हवाओं और फूलों की नई ख़ुशबू बताती है
तिरे आने का मौसम है कभी मिलने चले आओ
ग़ज़ल
बड़ा वीरान मौसम है कभी मिलने चले आओ
अदीम हाशमी