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बचपन तमाम बूढ़े सवालों में कट गया | शाही शायरी
bachpan tamam buDhe sawalon mein kaT gaya

ग़ज़ल

बचपन तमाम बूढ़े सवालों में कट गया

असग़र मेहदी होश

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बचपन तमाम बूढ़े सवालों में कट गया
स्कूल की किताबों से अब जी उचट गया

लिक्खे हुए थे सारे फ़रिश्तों के जिस पे नाम
शायद वही वरक़ किसी बच्चे से फट गया

ताज़ा हवा की आस में पर्दे उठा दिए
बस ये हुआ कि गर्द में सामान अट गया

कल कार्नस पे देख के चिड़ियों का खेलना
बे-वज्ह ज़ेहन उस के ख़यालों में बट गया

इक बच्चा उस खुली हुई खिड़की में झाँक कर
शर्मा के घर जो भागा तो माँ से लिपट गया

क्या कहता और चारागरों से वो बे-ज़बान
ज़ख़्मी परिंदा अपने परों में सिमट गया

सहरा दुहाई देता रहा अपनी प्यास की
बादल बरस के ख़ुश्क चटानों पे छट गया