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बारिशों में अब के याद आए बहुत | शाही शायरी
barishon mein ab ke yaad aae bahut

ग़ज़ल

बारिशों में अब के याद आए बहुत

बकुल देव

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बारिशों में अब के याद आए बहुत
अब्र जो बरसे नहीं छाए बहुत

जाने किस के ध्यान में डूबा था ख़्वाब
नींद ने कंगन तो खनकाए बहुत

फिर हुआ यूँ लग गया जी इश्क़ में
पहले पहले हम भी घबराए बहुत

मंज़िलों पर बार था रख़्त-ए-सफ़र
और हम आँसू बचा लाए बहुत

मुझ से मेरा रंग माँगे है धनक
रश्क में यूँ भी हैं हम-साए बहुत

दिल जो टूटा सज गया आँखों का हाट
इस खंडर से निकले पैराए बहुत

ज़िंदगी आख़िर पशेमाँ कर गई
हम इसी मोहलत पे इतराए बहुत

क़ाफ़िले के ग़म में ग़म शामिल नहीं
तुम 'बकुल' आगे निकल आए बहुत