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बारिश थी और अब्र था दरिया था और बस | शाही शायरी
barish thi aur abr tha dariya tha aur bas

ग़ज़ल

बारिश थी और अब्र था दरिया था और बस

सीमा ग़ज़ल

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बारिश थी और अब्र था दरिया था और बस
जागी तो मेरे सामने सहरा था और बस

आया ही था ख़याल कि फिर धूप ढल गई
बादल तुम्हारी याद का बरसा था और बस

ऐसा भी इंतिज़ार नहीं था कि मर गए
हाँ इक दिया दरीचे में रक्खा था और बस

तुम थे न कोई और था आहट न कोई चाप
मैं थी उदास धूप थी रस्ता था और बस

यूँ तो पड़े रहे मिरे पैरों में माह-ओ-साल
मुट्ठी में मेरी एक ही लम्हा था और बस