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बाग़ में फूलों को रौंद आई सवारी आप की | शाही शायरी
bagh mein phulon ko raund aai sawari aap ki

ग़ज़ल

बाग़ में फूलों को रौंद आई सवारी आप की

तअशशुक़ लखनवी

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बाग़ में फूलों को रौंद आई सवारी आप की
किस क़दर मम्नून है बाद-ए-बहारी आप की

बेवफ़ाई आप की ग़फ़लत-शिआरी आप की
मेरे दिल ने आदतें सीखी हैं सारी आप की

है यक़ीं बाहम गले मिलने को उट्ठें दस्त-ए-शौक़
हो अगर तस्वीर भी यकजा हमारी आप की

मय-कदे में टूटे जाते हैं बहम लड़ लड़ के जाम
मुफ़सिदा-पर्दाज़ है चश्म-ए-ख़ुमारी आप की

जज़्ब इसे कहते हैं आए कहने मेरी क़ब्र तक
अब यहाँ से बढ़ नहीं सकती सवारी आप की

करती हैं अंधेर हाथों की ये काली मैलियाँ
क़ातिल-ए-आलम हुई है सोगवारी आप की

जा-ब-जा होते हैं दामन-गीर दिल उश्शाक़ के
हर क़दम पर आज रुकती है सवारी आप की

याद-ए-अय्यामे कि था ज़ोरों पे जज़्ब-ए-हुस्न-ओ-इश्क़
वो मिरे दिल का तड़पना बे-क़रारी आप की

है शब-ए-महताब गोरे रंग से कपड़े सियाह
हुस्न को चमका रही है सोगवारी आप की

दो तरह के एक साग़र में लबालब है शराब
ख़्वाब-आलूदा नहीं चश्म-ए-ख़ुमारी आप की

मेरे लाशे को लिए फिरते हैं उन राहों में लोग
जिन गली-कूचों में फिरती थी सवारी आप की

आज किस पर रहम आया किस को रोए हैं हुज़ूर
है नसीब-ए-दुश्मनाँ आवाज़ भारी आप की

अहद में मजनूँ के लैला का रहा क्या दौर दौर
अब 'तअश्शुक़' के ज़माने में है बारी आप की