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बाग़-ए-जहाँ में सर्व सा गर्दन-कशीदा हूँ | शाही शायरी
bagh-e-jahan mein sarw sa gardan-kashida hun

ग़ज़ल

बाग़-ए-जहाँ में सर्व सा गर्दन-कशीदा हूँ

इश्क़ औरंगाबादी

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बाग़-ए-जहाँ में सर्व सा गर्दन-कशीदा हूँ
दामन तअल्लुक़ात से आलम के चीदा हूँ

इस क़ाफ़िला को नाला सुनाने का ज़ौक़ नीं
मिस्ल-ए-जरस के मैं न दहान-ए-दरीदा हूँ

नीं भूलने का मिस्ल-ए-जरस की फ़ुग़ाँ के तईं
नालाँ हूँ दिल अगरचे लब-ए-आर्मीदा हूँ

बिस्मिल हूँ दिल-फ़िगार हूँ और जाँ-ब-लब हूँ आह
सूरत अयाँ है नाले की हल्क़-ए-बुरीदा हूँ

रखता हूँ इस लिए दिल-ए-सोज़ाँ ओ चश्म-ए-तर
जिऊँ शम्अ दर्द-ए-दाग़ से इश्क़-आफ़्रीदा हूँ