बाग़-ए-जहाँ में सर्व सा गर्दन-कशीदा हूँ
दामन तअल्लुक़ात से आलम के चीदा हूँ
इस क़ाफ़िला को नाला सुनाने का ज़ौक़ नीं
मिस्ल-ए-जरस के मैं न दहान-ए-दरीदा हूँ
नीं भूलने का मिस्ल-ए-जरस की फ़ुग़ाँ के तईं
नालाँ हूँ दिल अगरचे लब-ए-आर्मीदा हूँ
बिस्मिल हूँ दिल-फ़िगार हूँ और जाँ-ब-लब हूँ आह
सूरत अयाँ है नाले की हल्क़-ए-बुरीदा हूँ
रखता हूँ इस लिए दिल-ए-सोज़ाँ ओ चश्म-ए-तर
जिऊँ शम्अ दर्द-ए-दाग़ से इश्क़-आफ़्रीदा हूँ
ग़ज़ल
बाग़-ए-जहाँ में सर्व सा गर्दन-कशीदा हूँ
इश्क़ औरंगाबादी