बादा-ए-वहशत-असर से मस्त वीराने में था
एक आलम बे-ख़ुदी का तेरे दीवाने में था
जल्वा फ़रमाता वो का'बे में न बुत-ख़ाने में था
ढूँढता था जिस को मैं वो दिल के काशाने में था
हसरतें थीं रक़्स में साज़-ए-तरब थी आह-ए-दिल
ऐश दुनिया-भर का मेरे एक ग़म-ख़ाने में था
पूछता क्या है हक़ीक़त उस की मुझ से मोहतसिब
क्या बताऊँ मैं तुझे क्या मेरे पैमाने में था
जोश-ए-वहशत में थी उस की जुस्तुजू दोनों तरफ़
इक क़दम मेरा था घर में एक वीराने में था
हर घड़ी थी जिस के जल्वे की निगाहों को तलाश
नूर उस का आँख में वो दिल के काशाने में था
सुर्ख़ डोरे आ गए पीते ही साक़ी आँख में
ये मय-ए-गुल-रंग थी या ख़ून पैमाने में था
ला सका ऐ शम्अ' दम-भर भी न ताब-ए-सोज़-इश्क़
ख़ाक होने के सिवा क्या ख़ाक परवाने में था
और क्या का'बे में मिलता संग-ए-असवद के सिवा
ढूँढता था जिस को तू ज़ाहिद वो बुत-ख़ाने में था
नग़्मा-ए-हक़ की सदा हर-दम किए देती थी मस्त
किस मज़े का इक तरन्नुम दिल के पैमाने में था
मेरी राहत का ज़रीया थीं मिरी आज़ादियाँ
वो क़दम था ऐश-ख़ाने में जो वीराने में था
कौंद कर गिरती थीं दिल पर हर तरफ़ से बिजलियाँ
इक नया अंदाज़ उन के तेग़ चमकाने में था
चश्म-ए-हक़-बीं के लिए हैं एक ही दैर-ओ-हरम
साफ़ का'बे में नज़र आया जो बुत-ख़ाने में था
अब वो रंग-ए-बादा-ए-उल्फ़त इलाही क्या हुआ
जोशिश-ए-हुब्ब-ए-वतन जो दिल के पैमाने में था
क्या कहूँ किस शय ने 'रौनक़' कर दिया मस्त-ए-अलस्त
था वो इक रंग-ए-मय-ए-इरफ़ाँ जो पैमाने में था

ग़ज़ल
बादा-ए-वहशत-असर से मस्त वीराने में था
प्यारे लाल रौनक़ देहलवी