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बादा-ए-ख़ुम-ख़ाना-ए-तौहीद का मय-नोश हूँ | शाही शायरी
baada-e-KHum-KHana-e-tauhid ka mai-nosh hun

ग़ज़ल

बादा-ए-ख़ुम-ख़ाना-ए-तौहीद का मय-नोश हूँ

महाराज सर किशन परशाद शाद

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बादा-ए-ख़ुम-ख़ाना-ए-तौहीद का मय-नोश हूँ
चोर हूँ मस्ती में ऐसा बे-ख़ुद-ओ-मदहोश हूँ

गिर्द फिरने दे मुझे साक़ी ये मेरा फ़र्ज़ है
मिस्ल-ए-साग़र दौर में हूँ बादा-ए-सर-जोश हूँ

तर्ज़-ए-ख़ामोशी मिरी बतलाती है इस राज़ को
हूँ नवासंज-ए-हक़ीक़त लाख मैं ख़ामोश हूँ

दर्द-मंद-ए-इश्क़ हो कर ज़ब्त का ख़ूगर हूँ मैं
सूरत-ए-सीमाब हो कर पैकर-ए-ख़ामोश हूँ

किस की फ़ुर्क़त वस्ल किस का और है माशूक़ कौन
'शाद' मैं इस आलम-ए-तकवीं का हम-आग़ोश हूँ