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बा'द मुद्दत के ख़याल-ए-मय-ओ-मीना आया | शाही शायरी
baad muddat ke KHayal-e-mai-o-mina aaya

ग़ज़ल

बा'द मुद्दत के ख़याल-ए-मय-ओ-मीना आया

फ़ितरत अंसारी

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बा'द मुद्दत के ख़याल-ए-मय-ओ-मीना आया
ज़िंदगी फिर मुझे जीने का क़रीना आया

हर नफ़स ज़ीस्त के माथे पे पसीना आया
ये भी जीना है कि ऐसा हमें जीना आया

कितने पहलू नज़र आ जाएँ न जाने दिल के
आइना-साज़ के हाथों में नगीना आया

फिर सर-ए-बज़्म कोई जाम-ब-कफ़ आता है
तर्क-ए-तौबा के तसव्वुर पे पसीना आया

तोहमत-ए-बादा-परस्ती का सज़ा-वार हुआ
तेरा मय-कश जिसे दो घूँट न पीना आया

चेहरा-ए-वक़्त से उल्टी न गई हम से नक़ाब
काम अपने न कभी दीदा-ए-बीना आया

तिश्ना-लब रक्खा तिरी चश्म-ए-करम ने साक़ी
जब मुझे बादा-परस्ती का क़रीना आया

उन की आँखों में छलक आए हैं आँसू 'फ़ितरत'
मेरे दामन में उमीदों का ख़ज़ीना आया