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बाद-ए-निस्याँ है मिरा नाम बता दो कोई | शाही शायरी
baad-e-nisyan hai mera nam bata do koi

ग़ज़ल

बाद-ए-निस्याँ है मिरा नाम बता दो कोई

साक़ी फ़ारुक़ी

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बाद-ए-निस्याँ है मिरा नाम बता दो कोई
ढूँढ कर लाओ मुझे मेरा पता दो कोई

हादिसा है कि सितारों से मुझे वहशत है
मुझ को इस दश्त के आदाब सिखा दो कोई

वो अँधेरा है कि तन्हाई से होल आता है
सारे बिछड़े हुए लोगों को सदा दो कोई

एक मुद्दत से चराग़ों की तरह जलती हैं
इन तरसती हुई आँखों को बुझा दो कोई

मौज-दर-मौज मरी ज़िंदगी गिर्दाब में है
इस सफ़ीने को किनारे से लगा दो कोई