EN اردو
बा'द-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ | शाही शायरी
baad-e-majnun kyun na hun main kar-farma-e-junun

ग़ज़ल

बा'द-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ

शाह नसीर

;

बा'द-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ
इश्क़ की सरकार से मलबूस-ए-रुस्वाई मिला

ख़ूब सा सीधा बनेगा देख ऐ सर्व-ए-चमन
उस की रा'नाई से मत तू अपनी ज़ेबाई मिला

जल गया परवाना जिस दम महफ़िल-आराई के साथ
ख़ाक में सब शम्अ' ने दी महफ़िल-आराई मिला

ताला'-ए-बेदार की मिन्नत उठाने भी न दी
इस से शब हम को तमन्ना ख़्वाब में लाई मिला

अपनी क़िस्मत में अज़ल से थी लिखी सर-गश्तगी
गर्द-ओ-बाद-आसा जो कार-ए-दश्त-पैमाई मिला

वाह-वा रहमत है उस को और मुझ को आफ़रीं
राह में बन कर असा जो ख़ार-ए-सहराई मिला

दस्त-गीरी भी न की तू ने कि जो नक़्श-ए-क़दम
ख़ाक में मैं तेरी ख़ातिर ऐ तवानाई मिला

सर-कशी ऐ चर्ख़ मत कर देख पेश-ए-'आफ़्ताब'
ख़ाक में देगा ये सारी तेरी ख़ुद-आराई मिला