ब-रंग-ए-नग़मा बिखर जाना चाहते हैं हम
किसी के दिल में उतर जाना चाहते हैं हम
ज़माना और अभी ठोकरें लगाए हमें
अभी कुछ और सँवर जाना चाहते हैं हम
उसी तरफ़ हमें जाने से रोकता है कोई
वो एक सम्त जिधर जाना चाहते हैं हम
वहाँ हमारा कोई मुंतज़िर नहीं फिर भी
हमें न रोक कि घर जाना चाहते हैं हम
नदी के पार खड़ा है कोई चराग़ लिए
नदी के पार उतर जाना चाहते हैं हम
उन्हें भी जीने के कुछ तजरबे हुए होंगे
जो कह रहे हैं कि मर जाना चाहते हैं हम
कुछ इस अदा से कि कोई चराग़ भी न बुझे
हवा की तरह गुज़र जाना चाहते हैं हम
ज़ियादा उम्र तो होती नहीं गुलों की मगर
गुलों की तरह निखर जाना चाहते हैं हम
ग़ज़ल
ब-रंग-ए-नग़मा बिखर जाना चाहते हैं हम
वाली आसी