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ब-क़द्र-ए-पैमाना-ए-तख़य्युल सुरूर हर दिल में है ख़ुदी का | शाही शायरी
ba-qadr-e-paimana-e-taKHayyul surur har dil mein hai KHudi ka

ग़ज़ल

ब-क़द्र-ए-पैमाना-ए-तख़य्युल सुरूर हर दिल में है ख़ुदी का

जमील मज़हरी

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ब-क़द्र-ए-पैमाना-ए-तख़य्युल सुरूर हर दिल में है ख़ुदी का
अगर न हो ये फ़रेब-ए-पैहम तो दम निकल जाए आदमी का

बस एक एहसास-ए-ना-रसाई न जोश इस में न होश उस को
जुनूँ पे हालत रुबूदगी की ख़िरद पे आलम ग़ुनूदगी का

है रूह तारीकियों में हैराँ बुझा हुआ है चराग़-ए-मंज़िल
कहीं सर-ए-राह ये मुसाफ़िर पटक न दे बोझ ज़िंदगी का

ख़ुदा की रहमत पे भूल बैठूँ यही न मा'नी है इस के वाइ'ज़
वो अब्र का मुंतज़िर खड़ा हो मकान जलता हो जब किसी का

वो लाख झुकवा ले सर को मेरे मगर ये दिल अब नहीं झुकेगा
कि किबरियाई से भी ज़ियादा मिज़ाज नाज़ुक है बंदगी का

'जमील' हैरत में है ज़माना मिरे तग़ज़्ज़ुल की मुफ़्लिसी पर
न जज़्बा-ए-इज्तिबा-ए-रिज़वी न कैफ़ 'परवेज़-शाहिदी' का