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ब-नाम-ए-कूचा-ए-दिलदार गुल बरसे कि संग आए | शाही शायरी
ba-nam-e-kucha-e-dildar gul barse ki sang aae

ग़ज़ल

ब-नाम-ए-कूचा-ए-दिलदार गुल बरसे कि संग आए

मजरूह सुल्तानपुरी

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ब-नाम-ए-कूचा-ए-दिलदार गुल बरसे कि संग आए
हँसा है चाक-ए-पैराहन न क्यूँ चेहरे पे रंग आए

बचाते फिरते आख़िर कब तलक दस्त-ए-अज़ीज़ाँ से
उन्हीं को सौंप कर हम तो कुलाह-ए-नाम-ओ-नंग आए

हँसो मत अहल-ए-दिल अपनी सी जानो बज़्म-ए-ख़ूबाँ में
चले आए इधर हम भी बहुत जब दिल से तंग आए

कहाँ सेहन-ए-चमन में बात कू-ए-सर-फ़रोशाँ की
इधर से सादा-रू निकले उधर से लाला-रंग आए

करो 'मजरूह' तब दार-ओ-रसन के तज़्किरे हम से
जब उस क़ामत के साए में तुम्हें जीने का ढंग आए