ब-ख़ुदा इश्क़ का आज़ार बुरा होता है
रोग चाहत का बुरा प्यार बुरा होता है
जाँ पे आ बनती है जब कोई हसीं बनता है
हाए माशूक़-ए-तरहदार बुरा होता है
ये वो काँटा है निकलता नहीं चुभ कर दिल से
ख़लिश-ए-इश्क़ का आज़ार बुरा होता है
टूट पड़ता है फ़लक सर पे शब-ए-फ़ुर्क़त में
शिकवा-ए-चर्ख़-ए-सितमगार बुरा होता है
आ ही जाती है हसीनों पे तबीअत नासेह
सच तो ये है कि दिल-ए-ज़ार बुरा होता है
ग़ज़ल
ब-ख़ुदा इश्क़ का आज़ार बुरा होता है
सुरूर जहानाबादी