अज़ीज़ आए मदद को न ग़म-गुसार आए
ज़माने भर को मुसीबत में हम पुकार आए
समझ सकी न ख़िरद जब तिरे इशारे को
जुनूँ नसीब हमीं थे जो सू-ए-दार आए
मिलेगा तोहफ़ा-ए-दिल के एवज़ नशात कि ग़म
किसे ख़बर है कि जीत आए हम कि हार आए
जुनूँ की आबला-पाई से फूल खिलते गए
न जाने कितने बयाबान हम निखार आए
हमारे पास भी कहने को हैं बहुत बातें
मगर कहे का हमारे जो ए'तिबार आए
शिकस्त-ए-जाम पे रोए शिकस्त-ए-दिल पे हँसे
कुछ ऐसे लम्हे भी 'जावेद' हम गुज़ार आए
ग़ज़ल
अज़ीज़ आए मदद को न ग़म-गुसार आए
जावेद वशिष्ट