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अज़ल थे है मुजे ख़ूबाँ सूँ इख़्लास | शाही शायरी
azal the hai muje KHuban sun iKHlas

ग़ज़ल

अज़ल थे है मुजे ख़ूबाँ सूँ इख़्लास

क़ुली क़ुतुब शाह

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अज़ल थे है मुजे ख़ूबाँ सूँ इख़्लास
अबद लग मुज है महबूबाँ सूँ इख़्लास

अगर तूँ आशिक़-ए-सादिक़ है तालिब
न कर तूँ बाज मतलूबाँ सूँ इख़्लास

सकी का हुस्न कीता जज़्ब-ए-मौलूद
उसी ते मुज है मज्ज़ूबाँ सूँ इख़्लास

पियारी के छंदाँ है सब कूँ मर्ग़ूब
मुजे लाज़िम है मरग़ूबाँ सूँ इख़्लास

जो है मक्तूब मानिंद ख़ाल-ओ-ख़त सूँ
धरूँ मैं उस थे मकतूबाँ सूँ इख़्लास

नयन नारी के क़ुल्लाबे हैं मशहूर
धरूँ मैं उस थे मक़लूबाँ सूँ इख़्लास

नबी सदक़े क़ुतुब-शह कम-जिहत
सदा धरता है तू ख़ूबाँ सूँ इख़्लास