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अज़ल अबद से बहुत दूर झूमते थे हम | शाही शायरी
azal abad se bahut dur jhumte the hum

ग़ज़ल

अज़ल अबद से बहुत दूर झूमते थे हम

अहमद हमदानी

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अज़ल अबद से बहुत दूर झूमते थे हम
किसी के ध्यान में कुछ दिन को जा बसे थे हम

वो ग़म हो या हो ख़ुशी कैफ़ कम न होता था
अजीब राह से हो कर गुज़र रहे थे हम

बहुत अज़ीज़ थे हम को हमारे दोस्त मगर
इक अजनबी के लिए सब से छुट गए थे हम

करम से आप के सरशार था ये दिल लेकिन
ख़ुशी की आँच में क्या क्या पिघल रहे थे हम

तुम्हें तो याद कहाँ होंगे अब मगर वो दिन
न देख कर तुम्हें हर लम्हा देखते थे हम

वो एक कैफ़ का आलम वो आरज़ू-मंदी
न जाने कौन सी दुनिया में जी रहे थे हम