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और कुछ याद नहीं अब से न तब से पूछो | शाही शायरी
aur kuchh yaad nahin ab se na tab se puchho

ग़ज़ल

और कुछ याद नहीं अब से न तब से पूछो

अंजुम इरफ़ानी

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और कुछ याद नहीं अब से न तब से पूछो
मेरी आँखों से लहू बहता है कब से पूछो

लम्हे लम्हे में हुआ जाता हूँ रेज़ा रेज़ा
वजह कुछ मुझ से न पूछो मिरे रब से पूछो

वो तो सूरज है हर इक बात का शोला है जवाब
रू-ब-रू आ के कहो या कि अक़ब से पूछो

याद है क़िस्सा-ए-ग़म का मुझे हर लफ़्ज़ अभी
हाल जिस दर्द का जिस रंज का जब से पूछो

तय हवा कैसे अंधेरों के समुंदर का सफ़र
ग़ाज़ा-ए-सुब्ह से क्या चादर-ए-शब से पूछो

ज़ख़्म देखो मिरे तलवों के न चेहरे का ग़ुबार
मुझ पे क्या गुज़री है ये राह-ए-तलब से पूछो

कितने सहरा कि सिमट आए हैं सीने में मिरे
तिश्नगी मेरी न सूखे हुए लब से पूछो

यूँ न हर चेहरे पे अब डालो सवाली नज़रें
उस के कूचे का पता तुम तो न सब से पूछो

मुझ से क्या पूछते हो सारे ही लम्हों का हिसाब
मिल के जिस मोड़ से हम बिछड़े हैं तब से पूछो

हर्फ़-ए-हक़ कहने में क्या क्या न हुए हम पे सितम
पूछना ही है तो बू-जहल ओ लहब से पूछो

जुम्बिश-ए-लब की तुम्हें भी है इजाज़त 'अंजुम'
बात जो पूछो बहर-हाल अदब से पूछो