और किस शय से दाग़-ए-दिल धोएँ
क्या करें गर न इस क़दर रोएँ
दिल तो पत्थर बना दिया तू ने
आरज़ू किस ज़मीन में बोएँ
हम किसी बात से नहीं डरते
हम ने पाया ही क्या है जो खोएँ
आज फ़ुर्सत मिली हैं मुद्दत बअ'द
आओ! तंगी-ए-वक़्त पर रोएँ
हम यही ख़्वाब देखते हैं 'असद'
उन के शाने पे रख के सर सोएँ
ग़ज़ल
और किस शय से दाग़-ए-दिल धोएँ
सुबहान असद