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असर-ए-आह-ए-दिल-ए-ज़ार की अफ़्वाहें हैं | शाही शायरी
asar-e-ah-e-dil-e-zar ki afwahen hain

ग़ज़ल

असर-ए-आह-ए-दिल-ए-ज़ार की अफ़्वाहें हैं

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

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असर-ए-आह-ए-दिल-ए-ज़ार की अफ़्वाहें हैं
या'नी मुझ पर करम यार की अफ़्वाहें हैं

शर्म ऐ नाला-ए-दिल ख़ाना-ए-अग़्यार में भी
जोश-ए-अफ़्ग़ान-ए-अज़ा-बार की अफ़्वाहें हैं

कब किया दिल पे मिरे पंद-ओ-नसीहत ने असर
नासेह-ए-बेहूदा-गुफ़्तार की अफ़्वाहें हैं

जिंस-ए-दिल के वो ख़रीदार हुए थे किस दिन
ये यूँही कूचा-ओ-बाज़ार की अफ़्वाहें हैं

क़ैस-ओ-फ़रहाद का मुँह? मुझ से मुक़ाबिल होंगे?
मर्दुम-ए-वादी-ओ-कोहसार की अफ़्वाहें हैं

ये भी कुछ बात है मैं और करूँ ग़ैर से बात
तुम न मानो कि ये अग़्यार की अफ़्वाहें हैं

किस तवक़्क़ो' पे जिएँ 'शेफ़्ता' मायूस करम
ग़ैर पर भी सितम यार की अफ़्वाहें हैं