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असर ऐसा है तप-ए-ग़म में दवा का उल्टा | शाही शायरी
asar aisa hai tap-e-gham mein dawa ka ulTa

ग़ज़ल

असर ऐसा है तप-ए-ग़म में दवा का उल्टा

मीर कल्लू अर्श

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असर ऐसा है तप-ए-ग़म में दवा का उल्टा
नब्ज़ देखे तो हो बीमार मसीहा उल्टा

हम-सरी की क़द-ए-मौज़ूँ ओ रुख़-ए-रौशन से
चोर की तरह दिया शम्अ को लटका उल्टा

सुब्ह को चेहरा-ए-ख़ुर्शीद किरन से निकला
सर से उस मह ने जो मक़ईस का सेहरा उल्टा

ख़फ़क़ान-ए-ग़म-ए-फ़ुर्क़त से दिल ऐसा उल्टा
मुँह के बाहर निकल आया जो कलेजा उल्टा

हसरत-ए-दीद में आख़िर को दम अपना उल्टा
पर्दा-ए-चश्म न उस शोख़ ने अपना उल्टा

नाज़ ओ अंदाज़ ने दीवाना बनाया दिल को
उस परी ने जो दम-ए-रक़्स दुपट्टा उल्टा

मैं तो करता नहीं ऐ 'अर्श' गिला फ़ुर्क़त का
शिकवा-ए-बख़्त वो कज-बाज़ है करता उल्टा