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अर्ज़-ए-अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार करूँ या न करूँ | शाही शायरी
arz-e-ahwal-e-dil-e-zar karun ya na karun

ग़ज़ल

अर्ज़-ए-अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार करूँ या न करूँ

शऊर बलगिरामी

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अर्ज़-ए-अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार करूँ या न करूँ
इश्क़ से अपने ख़बर-दार करूँ या न करूँ

गोश-ए-दिल से कभी वो हाल सुने या न सुने
वा मैं अपने लब-ए-गुफ़्तार करूँ या न करूँ

बोसा इक उस से जो माँगा तो लगा कहने नहीं
है शश-ओ-पंज कि तकरार करूँ या न करूँ

कहिए ऐ हज़रत-ए-दिल क्या है सलाह-ए-दौलत
यार से शिकवा-ए-दीदार करूँ या न करूँ

फूल आगे न मिरे तोड़ ज़रा ऐ गुलचीं
कह तू सैर-ए-गुल-ओ-गुलज़ार करूँ या न करूँ