अर्सा-ए-ज़ुल्मत-ए-हयात कटे
हम-नफ़स मुस्कुरा कि रात कटे
समर-ए-आरज़ू का ज़िक्र न छेड़
छूने पाए न थे कि हात कटे
काश हर ज़ुल्फ़ तेग़ बन जाए
काश ज़ंजीर-ए-हादसात कटे
ऐ बक़ा-ए-दवाम के मालिक
किस तरह उम्र-ए-बे-सबात कटे
आदमी जुस्तुजू-ए-राह में है
तुझ को ज़िद है रह-ए-नजात कटे
शब-ए-ख़ल्वत-सुख़न सुख़न की दाद
और सर-ए-बज़्म बात बात कटे

ग़ज़ल
अर्सा-ए-ज़ुल्मत-ए-हयात कटे
जाफ़र ताहिर