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अर्सा-ए-ज़ुल्मत-ए-हयात कटे | शाही शायरी
arsa-e-zulmat-e-hayat kaTe

ग़ज़ल

अर्सा-ए-ज़ुल्मत-ए-हयात कटे

जाफ़र ताहिर

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अर्सा-ए-ज़ुल्मत-ए-हयात कटे
हम-नफ़स मुस्कुरा कि रात कटे

समर-ए-आरज़ू का ज़िक्र न छेड़
छूने पाए न थे कि हात कटे

काश हर ज़ुल्फ़ तेग़ बन जाए
काश ज़ंजीर-ए-हादसात कटे

ऐ बक़ा-ए-दवाम के मालिक
किस तरह उम्र-ए-बे-सबात कटे

आदमी जुस्तुजू-ए-राह में है
तुझ को ज़िद है रह-ए-नजात कटे

शब-ए-ख़ल्वत-सुख़न सुख़न की दाद
और सर-ए-बज़्म बात बात कटे