अक़्ल कहती है कोई ढूँड मफ़र की सूरत
दिल ये कहता है बदल जाएगी घर की सूरत
कौन रस्ते में इन्हें छोड़ के जा सकता है
ख़्वाहिशें होती हैं सामान-ए-सफ़र की सूरत
आदमी ताश के पत्ते हैं तिरे हाथों में
ऐ ख़ुदा तू भी तो है शोबदा-गर की सूरत
मेरी तर-दामनी-ए-चश्म पे यूँ तंज़ न कर
मैं सदफ़ हूँ तू मिरा दिल है गुहर की सूरत
अपनी ही ज़ात का इक दायरा बुन रक्खा है
अपनी गर्दिश में हैं हम लोग भँवर की सूरत
जाने किस सम्त ये शोरीदा-सरी ले जाए
ज़द में आँधी की हूँ टूटे हुए पर की सूरत
कौन आया सर-ए-सहरा-ए-मोहब्बत 'मोहसिन'
ज़र्रा ज़र्रा महक उट्ठा गुल-ए-तर की सूरत
ग़ज़ल
अक़्ल कहती है कोई ढूँड मफ़र की सूरत
मोहसिन एहसान