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अपनी हस्ती से था ख़ुद मैं बद-गुमाँ कल रात को | शाही शायरी
apni hasti se tha KHud main bad-guman kal raat ko

ग़ज़ल

अपनी हस्ती से था ख़ुद मैं बद-गुमाँ कल रात को

अब्दुल अलीम आसि

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अपनी हस्ती से था ख़ुद मैं बद-गुमाँ कल रात को
कुछ न था अंदेशा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ कल रात को

चाँदनी बरसात सेहन-ए-गुलिस्ताँ दिलकश हवा
थीं हुजूम-ए-ग़म में ये रंगीनियाँ कल रात को

वुसअ'त-ए-तख़ईल के हल्क़े में था अर्श-ए-बरीं
देखती थीं चश्म-ए-दिल कौन-ओ-मकाँ कल रात को

मिल रहे थे दस्त-ए-उल्फ़त से मुझे जाम-ए-शराब
मेहरबाँ था वो बुत-ए-ना-मेहरबाँ कल रात को

वो मोहब्बत की निगाहें वो मोहब्बत के कलाम
हाँ दो-बाला थी अदा-ए-दिल-सताँ कल रात को

हर नज़र पैग़ाम हर अंदाज़ में रक़्साँ उम्मीद
और ही था उस का तर्ज़-ए-इम्तिहाँ कल रात को

इफ़्फ़त-ए-उलफ़त से थी आईना-ए-दिल की जिला
वर्ना था जज़्बात का दरिया रवाँ कल रात को

ज़ौक़ से वो सुन रहे थे दास्तान-ए-ग़म मिरी
हो रहा था इंक़िलाब-ए-आसमाँ कल रात को

दिल की इक आवाज़ थी इस बज़्म में तफ़सीर-ए-ग़म
हो चुके थे वो भी मजबूर-ए-फ़ुग़ाँ कल रात को

तफ़रक़े बे-ऐत्मादी दुश्मनी मक्र-ओ-फ़रेब
थी तिरी ता'बीर ऐ हिन्दोस्ताँ कल रात को

सो चुके थे चंद ही घंटों में अरबाब-ए-नशात
सुब्ह तक था साथ वो आराम-ए-जाँ कल रात को

रंग-ए-सहबा चश्म-ए-नर्गिस में था 'आसी' वक़्त-ए-सुब्ह
जागने से हो रही थीं ख़ूँ-फ़िशाँ कल रात को