अपनी धुन में रहता हूँ
मैं भी तेरे जैसा हूँ
ओ पिछली रुत के साथी
अब के बरस मैं तन्हा हूँ
तेरी गली में सारा दिन
दुख के कंकर चुनता हूँ
मुझ से आँख मिलाए कौन
मैं तेरा आईना हूँ
मेरा दिया जलाए कौन
मैं तिरा ख़ाली कमरा हूँ
तेरे सिवा मुझे पहने कौन
मैं तिरे तन का कपड़ा हूँ
तू जीवन की भरी गली
मैं जंगल का रस्ता हूँ
आती रुत मुझे रोएगी
जाती रुत का झोंका हूँ
अपनी लहर है अपना रोग
दरिया हूँ और प्यासा हूँ
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ग़ज़ल
अपनी धुन में रहता हूँ
नासिर काज़मी