अपने रहने का ठिकाना और है
ये क़फ़स ये आशियाना और है
मौत का आना भी देखा बार-हा
पर किसी पर दिल का आना और है
नाज़ उठाने को उठाते हैं सभी
अपने दिल का नाज़ उठाना और है
दर्द-ए-दिल सुन कर तुम्हें नींद आ चुकी
बंदा-परवर ये फ़साना और है
रात भर में शम-ए-महफ़िल जल-बुझी
आशिक़ों का दिल जलाना और है
हम कहाँ फिर बाग़बाँ गुलशन कहाँ
एक दो दिन आब-ओ-दाना और है
भोली भोली उन की बातें हो चुकीं
अब ख़ुदा रक्खे ज़माना और है
छोड़ दूँ क्यूँकर दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ
कोई ऐसा आस्ताना और है
यार-ए-सादिक़ ढूँडते हो तुम 'जलील'
मुश्फ़िक़-ए-मन ये ज़माना और है
ग़ज़ल
अपने रहने का ठिकाना और है
जलील मानिकपूरी