अपने दिल की खोज में खो गए क्या क्या लोग
आँसू तपती रेत में बो गए क्या क्या लोग
किरनों के तूफ़ान से बजरे भर भर कर
रौशनियाँ उस घाट पर ढो गए क्या क्या लोग
साँझ-समय इस कुंज में ज़िंदगियों की ओट
बज गई क्या क्या बाँसुरी रो गए क्या क्या लोग
मैली चादर तान कर इस चौखट के द्वार
सदियों के कोहराम में सो गए क्या क्या लोग
गठड़ी काल रैन की सोंटी से लटकाए
अपनी धुन में ध्यान-नगर को गए क्या क्या लोग
मीठे मीठे बोल में दोहे का हिन्डोल
सुन सुन उस को बाँवरे हो गए क्या क्या लोग
ग़ज़ल
अपने दिल की खोज में खो गए क्या क्या लोग
मजीद अमजद