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अपने दिल की खोज में खो गए क्या क्या लोग | शाही शायरी
apne dil ki khoj mein kho gae kya kya log

ग़ज़ल

अपने दिल की खोज में खो गए क्या क्या लोग

मजीद अमजद

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अपने दिल की खोज में खो गए क्या क्या लोग
आँसू तपती रेत में बो गए क्या क्या लोग

किरनों के तूफ़ान से बजरे भर भर कर
रौशनियाँ उस घाट पर ढो गए क्या क्या लोग

साँझ-समय इस कुंज में ज़िंदगियों की ओट
बज गई क्या क्या बाँसुरी रो गए क्या क्या लोग

मैली चादर तान कर इस चौखट के द्वार
सदियों के कोहराम में सो गए क्या क्या लोग

गठड़ी काल रैन की सोंटी से लटकाए
अपनी धुन में ध्यान-नगर को गए क्या क्या लोग

मीठे मीठे बोल में दोहे का हिन्डोल
सुन सुन उस को बाँवरे हो गए क्या क्या लोग