अपने अहवाल पे हम आप थे हैराँ बाबा
आँख दरिया थी मगर दिल था बयाबाँ बाबा
ये वो आँसू हैं जो अंदर की तरफ़ गिरते हैं
हों भी तो हम नज़र आते नहीं गिर्यां बाबा
इस क़दर सदमा है क्यूँ एक दिल-ए-वीराँ पर
शहर के शहर यहाँ हो गए वीराँ बाबा
ये शब ओ रोज़ के हंगामों से सहमे हुए लोग
रहते हैं मौज-ए-सबा से भी हिरासाँ बाबा
ऊँची दीवारों से बाहर निकल आए तो खुला
हम ने सीनों में बना रक्खे हैं ज़िंदाँ बाबा
ख़ुश-गुमाँ हो के न बैठ इन दर-ओ-दीवार से पूछ
अहल-ए-ख़ाना भी हैं कुछ रोज़ के मेहमाँ बाबा
यख़ हवाओं से मुझे आती है ख़ुशबू-ए-बहार
शोला-ए-गुल की अमीं है ये ज़मिस्ताँ बाबा
गर्दबाद आएँ कि गिर्दाब, बयाबाँ हो कि बहर
ज़िंदगी होती है आप-अपनी निगहबाँ बाबा
गई रुत लौट भी आती है 'ज़िया' हौसला रख
हम ने देखी हैं सियह शाख़ों पे कलियाँ बाबा
ग़ज़ल
अपने अहवाल पे हम आप थे हैराँ बाबा
ज़िया जालंधरी