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अपने अहद-ए-वफ़ा को भूल गए | शाही शायरी
apne ahd-e-wafa ko bhul gae

ग़ज़ल

अपने अहद-ए-वफ़ा को भूल गए

मुज़्तर ख़ैराबादी

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अपने अहद-ए-वफ़ा को भूल गए
तुम तो बिल्कुल ख़ुदा को भूल गए

कुछ न पूछ इंतिहा-ए-रंज-ए-फ़िराक़
दर्द पा कर दवा को भूल गए

हम ने याद-ए-बुताँ में दम तोड़ा
मरते मरते ख़ुदा को भूल गए

उन की बातों को याद करता हूँ
जो मिरी इल्तिजा को भूल गए

दरमियानी तअ'ल्लुक़ात न पूछ
इब्तिदा इंतिहा को भूल गए

उन से दो दिन भी चाह निभ न सकी
'मुज़्तर'-ए-बे-नवा को भूल गए