अपने अहद-ए-वफ़ा को भूल गए
तुम तो बिल्कुल ख़ुदा को भूल गए
कुछ न पूछ इंतिहा-ए-रंज-ए-फ़िराक़
दर्द पा कर दवा को भूल गए
हम ने याद-ए-बुताँ में दम तोड़ा
मरते मरते ख़ुदा को भूल गए
उन की बातों को याद करता हूँ
जो मिरी इल्तिजा को भूल गए
दरमियानी तअ'ल्लुक़ात न पूछ
इब्तिदा इंतिहा को भूल गए
उन से दो दिन भी चाह निभ न सकी
'मुज़्तर'-ए-बे-नवा को भूल गए
ग़ज़ल
अपने अहद-ए-वफ़ा को भूल गए
मुज़्तर ख़ैराबादी