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अंदेशा-ए-अर्बाब-हरम साथ रहेगा | शाही शायरी
andesha-e-arbab-e-haram sath rahega

ग़ज़ल

अंदेशा-ए-अर्बाब-हरम साथ रहेगा

क़तील शिफ़ाई

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अंदेशा-ए-अर्बाब-हरम साथ रहेगा
जन्नत भी मिलेगी तो ये ग़म साथ रहेगा

प्यासे ही गुज़र जाएँगे हम राह-ए-तलब से
इबरत के लिए साग़र-ए-जम साथ रहेगा

मंज़िल से पलट आएगी एक एक तजल्ली
हाँ शो'ला-ए-रुख़्सार-ए-सनम साथ रहेगा

तू और न आए दर-ज़िंदान-ए-वफ़ा तक
मर कर भी ये ग़म तेरी क़सम साथ रहेगा

अफ़्लाक से पलकों पे उतर आएँगे तारे
खुल कर भी शब-ए-ग़म का भरम साथ रहेगा

मय-ख़ाना बहुत दूर नहीं दीदा-ए-नम से
आ गर्दिश-ए-दौराँ कोई दम साथ रहेगा

राहों में 'क़तील' आएँगे सौ आइना-ख़ाने
लेकिन मिरा गुल-पोश क़लम साथ रहेगा