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अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए | शाही शायरी
andar ka zahr chum liya dhul ke aa gae

ग़ज़ल

अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए

राहत इंदौरी

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अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए

सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवक़ूफ़
सारे सिपाही मोम के थे घुल के आ गए

मस्जिद में दूर दूर कोई दूसरा न था
हम आज अपने आप से मिल-जुल के आ गए

नींदों से जंग होती रहेगी तमाम उम्र
आँखों में बंद ख़्वाब अगर खुल के आ गए

सूरज ने अपनी शक्ल भी देखी थी पहली बार
आईने को मज़े भी तक़ाबुल के आ गए

अनजाने साए फिरने लगे हैं इधर उधर
मौसम हमारे शहर में काबुल के आ गए